#2 Terminology of Accounting - लेखांकन की परिभाषित शब्दावली

Terminology of Accounting में आप जानेंगे Stock, Creditor, Debtor, Liabilities, Log Term/Fixed Liabilities, Short Term / Current Liabilities, Assets, Fixed Assets, Current Assets, Expenses, Direct Expenses, Indirect Expenses का टैली में क्या महत्व होता हैं।

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Terminology of Accounting

लेखांकन की परिभाषिक शब्दावली (Terminology of Accounting) 

Stock, Creditor, Debtor, Liabilities, Log Term/Fixed Liabilities, Short Term / Current Liabilities, Assets, Fixed Assets, Current Assets, Expenses, Direct Expenses, Indirect Expenses

रहतिया - Stock 

किसी भी व्यवसाय में वर्तमान में हमारे पास किसी भी मात्रा में जो माल उपलब्ध हैं। वह स्टॉक कहलाता हैं। साल के अंत में जो बिना बिके रह जाता है वह Closing Stock कहलाता हैं। और अगले साल के पहले दिन वही माल ओपनिंग स्टॉक कहलाता हैं। 

लेनदार - Creditor

वह व्यक्ति या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को उधार माल या सेवाएँ बेचती हैं। या रुपया उधार देती हैं। ऋण दाता या लेनदार (Creditor) कहलाता हैं। 

संक्षेप में उधार माल बेचने वाला creditor कहलाता हैं। इस व्यक्ति भविष्य में ऋणी से धनराशी से प्राप्त होना होती हैं।  

उदाहरण- रुपेश ने ओमप्रकाश को 10000 रु. का माल उधार बेचा। अब यहा रुपेश Creditor कहलायेगा। 

देनदार - Debtor

वह व्यक्ति या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से माल सेवाएँ या रुपया उधार लेते हैं। ऋणी या देनदार कहलाती हैं। संक्षेप में उधार माल खरिदने वाला ऋणी या Debtor कहलाता हैं। इस व्यक्ति को भविष्य में एक निश्चित दिन या निश्चित अवधि के बाद पैसा चुकना होता हैं। 

उदाहरण- रुपेश ने अनिल को 5000 रुपये का माल उधार बेचा। यहा अनिल ऋणी यानी Debtor कहलायेगा। 

दायित्व - Liabilities

वे सब ऋण जो व्यापार को अन्य व्यक्तियो अथावा अपने स्वामी, स्वामीयो के प्रती चुकाने होते दायित्व कहलाते हैं। ये दायित्व दो प्रकार की होती हैं। 

स्थायी दायित्व - Long Term / Fixed Liabilities

ये वो दायित्व है जो एक साल से ज्यादा समय के बाद या व्यापार समाप्ती होने पर चुकाने होती हैं। 

उदाहरण - आपने अपनी दुकान के लिए दो साल के उधार पर फ़र्निचर लिया। यानी आपको दो साल के अंदर पैसा चुकाना हैं। तो ये हो गयी Long Term Liability.

चालू दायित्व - Short term / Current Liabilities

ये वो Liability है जो एक साल या एक साल से कम समय में pay करना होता है या चुकाना होता है। 

उदाहरण - अपको अपने Creditors को एक साल के अंदर-अंदर चुकाना हैं तो ये हो गयी Short Term Liability. 

संपत्ति - Assets

व्यापार में समस्त वस्तुये जो व्यापार संचालन में सहायक होती हैं। संपत्ति (Assets) कहलाती हैं। 

ये मुख्य रुप से दो प्रकार की होती हैं। 

  • अचल/स्थायी संपत्ति - Fixed Assets

वे वस्तुये जो व्यापार चलाने के लिये स्थायी रुप से खरिदी जाती हैं। और जिन्हे बेचने के लिए नही खरीदा जाता हैं। और जिनका उपयोग बार-बार किया जा सकता है। अचल संपत्ति कहलाती हैं। 
ऐसी संपत्तिया व्यापार की आय बढाने में बडी सहायता देती हैं। इसके अंतर्गत भवन, मशीन, फर्नीचर, मोटर, गाड़ी आदि भी आते हैं। 

  • चल/अस्थायी संपत्ति - Current Assets

ये वे संपत्तिया हैं। जो स्थाई रुप से व्यापार में नही रहती है। जैसे- रोकड़, बैंक में जमा धन, स्टॉक, Debtors तथा अन्य वे सभी संपत्तिया जो आसानी व शीघ्रता से नगदी में परिवर्तित की जा सकती हैं। 

व्यय - Expenses

माल के उत्पादन और उसे बेचने में जो भी खर्चे होते हैं वह व्यय (Expenses) कहलाते हैं। 

ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। 

  • प्रत्यक्ष व्यय - Direct Expenses

यह वे खर्चे होते है जिन्हे व्यापारी माल खरीदते वक्त करता हैं। या माल के उत्पादन में करता हैं। कच्चा माल या पक्का माल खरिदने में लगने वला भाड़ा और उसको गोदाम तक ले जाने वाला किराया भी इसमें शामिल किया जाता है। उत्पादन की दशा में कच्चे माल की खरिद से लेकर उसे विक्रय योग्य स्थिति तक लाने में जो भी खर्चे होंगे वे सब प्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। 
direct expense वस्तु की लागत का एक हिस्स होता हैं। गाडी भाड़ा, Octroy duty, मज़दूरी, Factory की बिजली, ईधन आदि अन्य उत्पादन व्यय सभी direct expense के अंतर्गत आते हैं। 

  • अप्रत्यक्ष व्यय Indirect Expenses

Indirect Expenses वे Expenses होते है। जिनका संबंध वस्तु के क्रय या उसके निर्माण से न होकर वस्तु की बिक्री या कार्यालय से सम्बंधित व्यय होता है। ऐसे expense का प्रभाव विक्रय किये जाने वाले माल की लागत पर बिल्कुल नही होता हैं। यह व्यापार के लाभ को घटा देते है। 

इसके अंतर्गत आने वाले expense हैं। विज्ञापन, विक्रय पर गाड़ी भाड़ा, सेल्स Repetitive (बार-बार आने वाला) को दिया जाने वाला वेतन, उन्हे दिया जाने वाला कमीशन, कार्यलाय के कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन, बिजली का बील, ग्राहको को दी जाने वाली छूट यानी Discount, पुंजी व ऋण पर ब्याज, Bad Debt, depreciation (मूल्यह्रास) इत्यादि।